2008 फ़ील्ड मार्शल मानेक शॉ वेलिंगटन (तमिलनाडु) अस्पताल में भर्ती थे. गंभीर अस्वस्थता और अर्धमूर्छा में वे एक नाम अक्सर लेते थे – “पागी-पागी !” डाक्टरों ने एक दिन पूछ दिया “सर हू इज़ दिस पागी?”

और सैम साहब ने खुद ही ब्रीफ़ किया…..

1971 भारत युद्ध जीत चुका था, जनरल मानेक शॉ ढाका में थे. आदेश दिया कि पागी को बुलवाओ, डिनर आज उसके साथ करूँगा. हेलिकॉप्टर भेजा गया. हेलिकॉप्टर पर सवार होते समय पागी की एक थैली नीचे रह गई, जिसे उठाने के लिए हेलिकॉप्टर वापस उतारा गया था.

अधिकारियों ने नियमानुसार हेलिकॉप्टर में रखने से पहले थैली खोल कर देखी तो दंग रह गए क्योंकि उसमें दो रोटी, प्याज और बेसन का एक पकवान (गाठिया) भर था. डिनर में एक रोटी सैम साहब ने खाई और दूसरी पागी ने.

उत्तर गुजरात के सुईगांव अंतर्राष्ट्रीय सीमा क्षेत्र की एक बॉर्डर पोस्ट को रणछोड़दास पोस्ट नाम दिया गया. यह पहली बार हुआ कि किसी आम आदमी के नाम पर सेना की कोई पोस्ट हो साथ ही उनकी मूर्ति भी लगाई गई.

पागी यानी ‘मार्गदर्शक’, वो व्यक्ति जो रेगिस्तान में रास्ता दिखाए . ‘रणछोड़दास रबारी’ को जनरल सैम मानिक शॉ इसी नाम से बुलाते थे.

गुजरात के बनासकांठा ज़िले के पाकिस्तान सीमा से सटे गाँव पेथापुर गथड़ों के थे रणछोडदास. भेड़ बकरी व ऊँट पालन का काम करते थे. जीवन में बदलाव तब आया जब उन्हें 58 वर्ष की आयु में बनासकांठा के पुलिस अधीक्षक वनराज सिंह झाला ने उन्हें पुलिस के मार्गदर्शक के रूप में रख लिया.

हुनर इतना कि ऊँट के पैरों के निशान देख कर बता देते थे कि उस पर कितने आदमी सवार हैं. इंसानी पैरों के निशान देख कर वजन से लेकर उम्र तक का अंदाज़ा लगा लेते थे. कितने देर पहले का निशान है और कितनी दूर तक गया होगा सब एकदम सटीक आंकलन जैसे कोई कम्प्यूटर गणना कर रहा हो.

1965 युद्ध की शुरुआत में पाकिस्तान सेना ने भारत के गुजरात में कच्छ सीमा स्थित विधकोट पर कब्ज़ा कर लिया, इस मुठभेड़ में लगभग 100 भारतीय सैनिक शहीद ही गये थे और भारतीय सेना की एक 10 हजार सैनिकों वाली टुकड़ी को तीन दिन में छारकोट पहुँचना जरूरी था. तब ज़रूरत पड़ी थी पहली बार रणछोडदास पागी की! रेगिस्तानी रास्तों पर अपनी पकड़ की बदौलत उन्होंने सेना को तय समय से 12 घंटे पहले मंज़िल तक पहुँचा दिया था. सेना के मार्गदर्शन के लिए उन्हें सैम साहब ने खुद चुना था और सेना में एक विशेष पद सृजित किया गया था ‘पागी’ याने पग अथवा पैरों का जानकार.

भारतीय सीमा में छिपे 1200 पाकिस्तानी सैनिकों की लोकेशन और अनुमानित संख्या सिर्फ़ उनके पदचिह्नों से पता कर भारतीय सेना को बता दी थी, और इतना काफ़ी था भारतीय सेना के लिए वो मोर्चा फतेह करने के लिए.

1971 युद्ध में सेना के मार्गदर्शन के साथ साथ अग्रिम मोर्चे तक गोला बारूद पहुँचवाना भी पागी के काम का हिस्सा था. पाकिस्तान के पालीनगर शहर पर जो भारतीय तिरंगा फहरा था उस जीत में पागी की भूमिका अहम थी. सैम साब ने स्वयं 300 रुपये का नक़द पुरस्कार अपनी जेब से दिया था.

पागी को तीन सम्मान भी मिले 65 व 71 युद्ध में उनके योगदान के लिए संग्राम पदक, पुलिस पदक व समर सेवा पदक.

27 जून 2008 को सैम मानिक शॉ की मृत्यु हुई और 2009 में पागी ने भी सेना से ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति’ ले ली. तब पागी की उम्र 108 वर्ष थी. जी हाँ! आपने सही पढ़ा….. 108 वर्ष की उम्र में ‘स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति’! सन् 2013 में 112 वर्ष की आयु में पागी का निधन हो गया .

अब भी वे गुजराती लोकगीतों का हिस्सा हैं. उनकी शौर्य गाथाएँ युगों तक गाई जाएंगी. अपनी देशभक्ति, वीरता, बहादुरी, त्याग, समर्पण और शालीनता के कारण भारतीय सैन्य इतिहास में हमेशा के लिए अमर हो गए रणछोड़दास रबारी यानि हमारे ‘पागी’.

आज का दिन : ज्योतिष की नज़र में


जानिए कैसा रहेगा आपका भविष्य


खबर : चर्चा में


************************************************************************************




Disclaimer : इस न्यूज़ पोर्टल को बेहतर बनाने में सहायता करें और किसी खबर या अंश मे कोई गलती हो या सूचना / तथ्य में कोई कमी हो अथवा कोई कॉपीराइट आपत्ति हो तो वह [email protected] पर सूचित करें। साथ ही साथ पूरी जानकारी तथ्य के साथ दें। जिससे आलेख को सही किया जा सके या हटाया जा सके ।